Bharatabtak.com विशेष रिपोर्ट
छत्तीसगढ़ की बेटियाँ जब ठान लेती हैं, तो वे न केवल अपने लिए, बल्कि समाज के लिए मिसाल बन जाती हैं।
आज बात हो रही है वर्षा जी की, जो अंबिकापुर शहर की रहने वाली हैं। एक ऐसी युवती जो कभी गुपचुप, मोमोस, समोसा और डोसे की खुशबुओं से जुड़ी रही, और आज सूरजपुर जिले के एक सुदूरवर्ती गांव “बेदमी” में शिक्षा की अलख जगा रही हैं।
शहर से गांव की ओर – एक जिम्मेदारी भरा सफर
स्नातक की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद वर्षा जी का चयन शिक्षा विभाग में व्याख्याता के रूप में हुआ।
उनकी पहली पोस्टिंग अंबिकापुर से 15 किलोमीटर दूर दरीमा में थी। यह स्थान सुविधाजनक था और अंबिकापुर की सभी पसंदीदा चीज़ें आसानी से उपलब्ध थीं।
गुपचुप, मोमोस, इडली, डोसा जैसी चटपटी चीज़ें बचपन से उनके जीवन का हिस्सा रही थीं।
लेकिन हाल ही में सरकार द्वारा हुए युक्तिकरण के कारण उनकी नई पोस्टिंग सूरजपुर जिले के ऑडगी ब्लॉक के ‘बेदमी’ ग्राम पंचायत में कर दी गई।
बेदमी – जहाँ साधन सीमित, लेकिन ज़िम्मेदारी बड़ी है
यह गाँव चारों ओर से जंगल और पहाड़ों से घिरा है। न तो यहां बाजार है, न ढंग का नाश्ता, न ही मोबाइल नेटवर्क की सुविधा।
शिक्षा के क्षेत्र में भी हालात चिंताजनक हैं। बच्चों में पढ़ाई के प्रति उतनी रूचि नहीं है और संसाधनों की भारी कमी है।
लेकिन वर्षा जी ने इन सबके बीच भी हार नहीं मानी।
वे जब आज स्कूल जाते वक्त अपने पति से बोलीं:
“यहाँ के बच्चे भले ही पढ़ाई में थोड़े पीछे हैं, लेकिन इनके चेहरे पर जो मासूमियत है, वो शहरों में नहीं मिलती। हो सकता है मुझे यहाँ भेजे जाने के पीछे कोई उद्देश्य हो – शायद इनका भविष्य सँवारने का।”
एक सच्ची शिक्षिका वही होती है जो सुविधा नहीं, सेवा को चुनती है
आज वर्षा जी ने यह साबित कर दिया है कि अगर मन में समर्पण हो तो न गुपचुप की जरूरत रहती है, न मोमोस की।
बेदमी के बच्चों के भविष्य को रोशन करना ही अब उनका लक्ष्य है।
Bharatabtak.com की पूरी टीम वर्षा जी के इस समर्पण और साहस को नमन करती है।









