✍️ By BharatAbtak ब्यूरो | संपादकीय विशेष रिपोर्ट
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🧾 मुख्य समाचार:
क्रिकेटर मोहम्मद शमी को कोलकाता हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि वे अपनी पत्नी हसीन जहां और बेटी के भरण-पोषण के लिए हर महीने ₹4 लाख की राशि दें। जिसमें ₹1.30 लाख बेटी के लिए और ₹2.70 लाख पत्नी के लिए निर्धारित किए गए हैं।
बेटी का खर्च उठाना एक पिता की जिम्मेदारी है – यह बात शायद किसी को अखरे नहीं। मगर जब सवाल उस पत्नी के भरण-पोषण का आता है, जिसने पति पर गंभीर आरोप लगाए हों, सार्वजनिक रूप से बदनाम किया हो, और खुद ही बार-बार तलाक को नकारा हो, तब समाज असहज हो जाता है।
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💔 एकतरफा कानून या एकतरफा सोच?
मोहम्मद शमी ने हसीन जहां को कई बार तलाक का नोटिस भेजा, लेकिन जवाब में उन्हें “मरते दम तक तलाक नहीं दूंगी” जैसे बयान मिले। सवाल यह है कि जब रिश्ता अब बचा ही नहीं, भावनात्मक और सामाजिक रूप से सब कुछ खत्म हो गया, तो फिर कानून किस बिनाह पर महिला को पुरुष पर आर्थिक रूप से निर्भर बनाए रखता है?
क्या यह केवल मोहम्मद शमी का मामला है?
बिल्कुल नहीं।
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📌 आम पुरुषों की असहनीय हकीकत:
देशभर में लाखों ऐसे पुरुष हैं जो न सिर्फ टूटे रिश्तों का बोझ झेल रहे हैं, बल्कि दहेज, घरेलू हिंसा, और झूठे केसों में कोर्ट के चक्कर काटने को मजबूर हैं।
इनमें से कई पुरुष आत्महत्या कर लेते हैं, कई मानसिक रोगों से घिर जाते हैं, और बाकी जिंदगी ‘जमानत और तारीख़ों’ में कटती है।
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🧠 समाज को बदलती सोच की ज़रूरत:
यह लेख किसी महिला विरोधी मानसिकता से नहीं लिखा गया।
बल्कि यह उस संतुलन की मांग करता है, जिसमें हर पक्ष की बात सुनी जाए।
जहाँ महिलाओं को न्याय मिलना चाहिए, वहीं यह भी ज़रूरी है कि पुरुषों की पीड़ा, उनकी शिकायतें, और उनके आंसुओं को भी गंभीरता से लिया जाए।
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⚖️ क्या पुरुष आयोग की ज़रूरत है?
आज जब महिला आयोग, महिला हेल्पलाइन, और कानून पूरी संवेदनशीलता से महिलाओं की रक्षा करते हैं,
क्या पुरुषों के लिए कोई ऐसा मंच नहीं होना चाहिए?
जब तक “लड़का है, सह लेगा” वाली सोच खत्म नहीं होती, तब तक न्याय अधूरा रहेगा।
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📣 BharatAbtak की अपील:
न्याय सिर्फ कानूनी नहीं, सामाजिक और भावनात्मक संतुलन भी होता है।
हमें एक ऐसा भारत बनाना है जहाँ महिला और पुरुष दोनों को बराबर की गरिमा और कानूनी संरक्षण मिले।









